तूफ़ान के बाद का सन्नाटा है साहब … या सन्नाटे के बाद आने वाला है तूफ़ान …?
कौशल किशोर चतुर्वेदी
3 नवंबर को मतदान के बाद अब दावों का दौर जारी है। जीत-हार के क़यास के बीच दोनों दल ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने का दम भर रहे हैं। आने वाला मंगल किस दल के लिए मंगलकारी होगा और किसके लिए अमंगलकारी, यह क़ाबिले ग़ौर होगा । फ़िलहाल जिस तरह से दोनों ही दल अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं, निश्चित तौर से मंगल का दंगल किसी न किसी दल के लिए दावानल बनकर विस्फोट ज़रूर करेगा। भाजपा सरकार में है और कांग्रेस मंगल के भरोसे सरकार बनाने का भरोसा जता रही है। शिवराज जहाँ नाम से ही राम के क़रीब हैं और राम भक्त हनुमान राम काज करने के लिए प्रतिबद्ध हैं तो कमलनाथ ख़ुद को हनुमान भक्त के रूप में जग ज़ाहिर कर चुके हैं। ऐसे में आने वाले मंगलवार से दोनों ही दल प्रबल आस लगाए बैठे हैं।अब जहाँ दोनों दल अग्नि परीक्षा के दौर से गुज़र रहे हैं तो ख़ास परीक्षा मंगल और स्वयं रामभक्त हनुमान की भी है कि किसका मंगल करें ? फ़िलहाल मंगलवार को हुए मतदान के तूफ़ान के बाद सन्नाटे का दौर है…तो परिणाम आने पर सन्नाटे के बाद मंगलवार को ही तूफ़ान आने की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता। सरकार भाजपा की ही रहेगी तो यह तूफ़ान कांग्रेस के खेमे में मारकाट मचाएगा और अगर भाजपा के खाते में उनकी उम्मीदों के मुताबिक़ सीटें नहीं आईं तो कहीं न कहीं भाजपा का खेमा अंदरूनी घमासान के तूफानों से घिरे बिना नहीं रहेगा।
फ़िलहाल तो जिस तरह मध्य प्रदेश की स्थिति बनी है लोकतंत्र पर संकट के बादल लगातार मंडरा रहे हैं। जहाँ एक तरफ़ कांग्रेस के विधायक इस्तीफ़ा दे-देकर विष्णु और शिव से एकाकार होने को बेताब नज़र आ रहे हैं तो शिवराज का आरोप है कि जब से कमलनाथ मध्य प्रदेश आए हैं तब से प्रदेश राजनैतिक गंदगी की ओर बढ़ रहा है। उनका ताज़ातरीन आरोप है कि कमलनाथ भाजपा विधायकों से संपर्क कर उन पर दबाव और प्रभाव की राजनीति कर रहे हैं। और कांग्रेस पहले से ही लोकतंत्र की हत्या का संगीन आरोप भाजपा के माथे मढ़ रही है। और इन उपचुनावों को धर्मयुद्ध की संज्ञा देकर कहीं न कहीं वापसी का दम भी भर रही है।दोनों ही दल एक दूसरे पर हार की आशंका से खरीद-फ़रोख़्त की क़वायद का आरोप लगा रहे हैं। मतदाता अपना फ़ैसला सुना चुका है और मंगलवार को यह साफ़ हो जाएगा कि मतदाताओं ने लोकतंत्र को बचाने की कवायद किस ढंग से की है। और मतदाताओं का फ़ैसला किसके दिल को दुखाता है और किसका मान बढ़ाता है। मतदाताओं ने जिस तरह बढ़ चढ़कर मतदान किया है फ़िलहाल उसका विश्लेषण भी दल अपनी-अपनी अनुकूलता के मुताबिक़ कर रहे हैं लेकिन आने वाले परिणाम यह साफ़ करने जा रहे हैं की मतदाता की सोच क्या रही है? परिणाम आने के बाद एक बात और साफ़ होगी कि सपा-बसपा और निर्दलीय विधायकों की भूमिका का असर कितना रहेगा ? लोकतंत्र के सही प्रतीक के रूप में यह विधायक दोनों ही दलों के संपर्क में हैं और इनके इधर-उधर जाने से लोकतंत्र की मर्यादा प्रभावित नहीं होती है।सपा-बसपा विधायक हमेशा ही हाई कमान का आदेश मानते हुए किसी भी खेमे में जाने को स्वतंत्र हैं तो निर्दलीय विधायकों को ख़ुद ही तय करना है कि उनके क्षेत्र की जनता का हित किसके साथ जाने में है। ऐसे में ये विधायक जो भी फ़ैसला लेते हैं वह लोकतंत्र के अनुकूल ही परिभाषित होता है। और जिस तरह मध्य प्रदेश में हाल की कांग्रेस और भाजपा सरकारों में निर्दलीय विधायकों ने साबित किया है, तो उस स्थिति में यह माना जा सकता है कि निर्दलीय विधायक जहाँ भी रहेंगे वहाँ लोकतंत्र का मान बढ़ाते रहेंगे।
- ख़ैर अब केवल दो दिन शेष हैं और तीसरा दिन मध्य प्रदेश के इतिहास में यादगार बनने जा रहा है। इन दो दिनों में दोनों ही दलों के दिग्गज ईवीएम में क़ैद वोटों की गिनती अपने-अपने मुताबिक़ करते रहेंगे। पर तीसरे दिन ईवीएम के वोटों की गिनती के बाद सब कुछ साफ़ हो जाएगा। प्रदेश में सत्ता किसी की भी रहे लेकिन मतदाता यह फ़ैसला ज़रूर सुनाएंगे कि 20 मार्च 2020 को कांग्रेस सरकार का गिरना उन्हें रास आया है या नहीं? या फिर यह भी कह सकते हैं कि कांग्रेस विधायकों के इस्तीफ़ा देकर भाजपा का चेहरा बनने को भाजपा कार्यकर्ताओं और मतदाताओं ने तवज्जो दी है या नहीं, मंगलवार का दिन यह फ़ैसला सुनाने वाला है। जिसका इंतज़ार राजनैतिक दलों के दिग्गजों को है तो मध्य प्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता की निगाहें भी इस पर हैं। साथ ही देश और दुनिया में भी मध्य प्रदेश के उपचुनावों के परिणाम की ख़ास चर्चा होने वाली है।