राम के आचरण की कसौटी पर खरा उतरने की चुनौती …
कौशल किशोर चतुर्वेदी
भारतीय राजनीति में आज़ादी के बाद से अब तक अगर कोई सबसे ज़्यादा प्रासंगिक रहा है तो वह राम हैं। अगर लोक की बात की जाए तो राम हर भारतीय के मन में सनातन काल से विराजे हैं।अयोध्या में भगवान राम की जन्मभूमि पर मंदिर बनना निश्चित तौर पर हर राम भक्त के लिए गर्व की बात है।बाबर और औरंगज़ेब कभी भी भारतीय इतिहास में आदर और सम्मान पाने का हक़ नहीं रखते।निश्चित तौर से अगर भारतीय राजे महाराजे निहित स्वार्थों में अपना सर्वस्व लौटाने पर मजबूर न हुए होते तो देश को ग़ुलामी का एक लंबा अरसा भोगने को मजबूर न होना पड़ता। और बाबर कि यह हिम्मत भी न होती कि वह अयोध्या मथुरा काशी में ऐसे विवादित ढांचों को जन्म दे पाता। पर हर घटना कोई न कोई सबक़ सिखाना नहीं भूलती। ग़ुलामी के दौर का इतिहास निश्चित तौर पर हमें अभी भी सबक़ सिखाने के लिए मौजूद है। तो कहीं न कहीं यह लंबा काल हमें यह आईना भी दिखाता है कि राजाओं महाराजाओं ने भले ही धर्म को आश्रय देने का प्रपंच किया हो लेकिन यदि वह भगवान राम के आचरण का मन से अनुसरण कर पाते तो देश को ग़ुलामी के कष्टकारी काल से नहीं गुज़रना पड़ता।तो फिर ना दिल्ली सल्तनत राज करती, न मुग़ल काल सिर चढ़कर बोलता और न ही अंग्रेज़ अपनी औक़ात दिखा पाते।
ख़ैर यह सब तो इतिहास का हिस्सा बन ही चुके हैं लेकिन आज भी राम मंदिर के साथ राम के आचरण को वरण करना और राम के आचरण की कसौटी पर खरा उतरना आधुनिक संवैधानिक शासकों और उनके द्वारा शासित भगवान राम की अनुयाई जनता के लिए कठिन चुनौती ही है।वरना भगवान कभी भी इंसानों की गलती का खामियाजा ख़ुद नहीं भुगतेंगे। चाहे हम संवैधानिक पदों पर बैठकर ख़ुद को खुदा से कम न समझें लेकिन हमारी करतूतों का अंजाम हमें ख़ुद ही भुगतना पड़ेगा। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण कोरोना महामारी भी है। जो अयोध्या में ही राम के पुजारी को भी नहीं छोड़ती है तो देश दुनिया में चुनिंदा ताक़तवर चेहरों में शुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे क़रीबी देश की सबसे ताक़तवर हस्तियों में दूसरे पायदान पर बैठे अमित शाह को भी नहीं छोड़ती है। भगवान राम ख़ुद देह धारण करके कष्टों को भोगते हुए, मर्यादा में रहकर, सबका सम्मान कर, संतों की चरणवंदना कर, दानवों का वध कर एक अनुकरणीय आचरण सबके सामने रखते हैं। जिसे कहीं न कहीं लोक मान्यता मिलती है और हज़ारों साल तक यह आचरण ही तन, मन और रोम-रोम में ज़िंदा रहता है।और हर स्थितियों परिस्थितियों और मुसीबत से पार पाने में इंसान के सामने ख़ुद अपने आचरण के उदाहरण पेश करता है।पर इंसान न तो इतिहास से सीखता है और न ही भगवान के आचरण से। यह पहले भी साबित होता रहा है और अब भी यही सामने है।
ग़ुलामी के दौर में हमारा संघर्ष आज़ादी पाने का रहा है तो आज़ादी के दौर में अब हम ख़ुद का अस्तित्व बचाने तक सिमट गए हैं। भोपाल की सड़कों पर ही सारे नज़ारे देखे जा सकते हैं। कहीं महल खड़े हैं, बड़ी बड़ी इमारतें खड़ी है, दोमंजिला मकान खड़े हैं तो दूसरी तरफ़ झुग्गी-झोंपड़ियों और फुटपाथ पर अमानवीय परिस्थितयों में जीती जिंदगियां भी मौजूद हैं।एक तरफ़ शराब कबाब और शबाब में ज़िंदगियाँ सराबोर है तो दूसरी तरफ़ भूखे पेट, कुपोषित और दाने-दाने को मोहताज जीवन साँसों के बिछुड़ने की उम्मीद लगाए हैं।एक तरफ़ लोग महंगे-महंगे अस्पतालों में छोटी से छोटी बीमारी का महंगे से महँगा इलाज कराने का माद्दा रखते हैं तो दूसरी तरफ़ पैसे के अभाव में बिना इलाज के ही दम तोड़ती मजबूर जिंदगियां सहज ही देखी जा सकती है। अगर राज्य की बात आती है तो कोई भी इंसान ‘राम राज्य ‘ की कल्पना ही करता है।क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि राम मंदिर बनने के बाद हमारे देश में रामराज्य स्थापित हो जाएगा। जहाँ राजा को नींद नहीं आएगी यदि प्रजा का एक भी व्यक्ति दुखी होगा। राजा भोजन नहीं करेगा यदि प्रजा में कोई भी भूखा सोने पर मजबूर होगा। मर्यादा में रहकर आचरण का वह उदाहरण पेश करेगा जिसका अनुसरण करने के लिए राजा और प्रजा सब सभी आतुर रहें। शायद आज ज़रूरत है तो राम को रोम-रोम में बसाने के साथ ही उनके आचरण की कसौटी पर खरा उतरने की चुनौती को स्वीकार करने की। वरना कल अयोध्या भी भव्य राम मंदिर की साक्षी बनेगी, करोड़ों भक्त यहाँ पहुंचकर मत्था टेकेंगे और आस्था श्रद्धा भक्ति की संतुष्टि अर्जित करेंगे लेकिन राम को पाने का सपना शायद सपना ही रहेगा।
अंत में राम को समर्पित यह भाव –
न लगे रहें हम दीवारों के महिमामंडन में …
*कौशल किशोर चतुर्वेदी*
राम गढ़े हैं अंतर्मन में …
अब न लगे रहें हम दीवारों के महिमामंडन में …
राम मंदिर हमें गौरवान्वित कर रहा है
क्या इसलिए कि आस्था के केंद्र राम को घर मिल रहा है …
कहीं इसलिए तो नहीं कि बाबरी मस्जिद ढहा के बन रही इमारत से राम के नाम पर आम का अहंकार खिल रहा है…
सचेत रहना बंदे कहीं राम के नाम पर ही राम का तू दमन तो नहीं कर रहा है…
अयोध्या के मंदिर में राम नहीं बसेंगे …
मन के मंदिर में ही राम विश्राम करेंगे …
अब राममंदिर नहीं रामराज्य की बात करें …
न कोई भूखा मरे न अपमान सहे ऐसे राज्य को आत्मसात करें …
अमीर कोई भी रहे पर न कोई गरीब रहे …
शत्रुता का नाश हो, मित्रता प्रेम क़रीब रहे …
अपराध घृणा अहंकार राम मंदिर की नींव में दफन हो जाएँ …
प्रेम सौहार्द भाईचारा के साथ हम भारत की नई इमारत बनाएँ…
राम माया मोह मद और लोभ का प्रतीक नहीं हैं…
राम काम क्रोध तृष्णा घृणा का प्रतीक नहीं हैं…
राम भ्रातृत्व, दया, क्षमा और करुणा की खान हैं…
राम त्याग समर्पण मर्यादा और बलिदान हैं…
अब राम नाम का सूरज उदय हो गया है…
अब राम के नाम पर रोशनी कर धर्मांन्धता की माला जपने का समय नहीं है…
अब ज़िंदगी और जग के सारे अंधेरे कोनों को जगमगाने का समय है…
ग़रीबी गंदे कपड़े पहनकर देश दुनिया से दफ़ा हो जाए…
कुपोषण, भूख, भेदभाव, जातिवाद, अमानवीयता जड़ मूल से सफ़ा हो जाए…
शिक्षा स्वास्थ्य रोटी कपड़ा मकान बिजली सड़क पानी सबका अधिकार हो…
वसुधैव कुटुंबकम की सरिता बहे और देश दुनिया में इंसानियत अमन चैन और प्यार हो …
ऐसा रामसेतु बने जो सभी दिलों को मिला सके…
सीता भी सुख से रह सके और जनता भी संदेह से पार पा सके…
ताकि साबित हो सके कि आचरण राममय हो गया है …
दुनिया का हर प्राणी बुराई पर विजय पाकर निर्भय हो गया हैं…
अब राम के मुखौटे के सहारे कोई नौटंकी नहीं कर रहा…
हर आदमी देश के लिए जी रहा और देश के लिए ही मर रहा …
राम धनुष बाण लेकर मुस्कुराते रहें…
सीता लक्ष्मण हनुमान रामभक्तों के राममय कामों को गुनगुनाते रहें …
और गर्व से अनुभूति कर सकें कि राम गढ़े हैं सबके अंतर्मन में …
अब कोई नहीं लगा है दीवारों के महिमामंडन में …