मध्यप्रदेश की राजनीति को स्थायित्व की संजीवनी मिलने का दिन है आज …
कौशल किशोर चतुर्वेदी
मध्यप्रदेश की राजनीति का अहम दिन आख़िर आ ही गया। स्थायित्व के लिए तड़प रही मध्यप्रदेश की राजनीति को आज संजीवनी मिलने का दिन है। यह संजीवनी रामभक्त हनुमान ही देने वाले हैं मंगलवार के दिन।हालाँकि लक्ष्मण को मुर्छा से उबार जिंदगी लौटाने वाली संजीवनी मध्यप्रदेश में 28 उपचुनावों के परिणाम ईवीएम से उगलकर ‘शिवराज’ को ‘तथास्तु’ कह अपना असर दिखाएगी या ‘कमलनाथ’ की क़रीब 236 दिन की मूर्छा पर विराम लगाते हुए ‘आयुष्मान भव’ का आशीर्वचन देकर नया जीवन देगी, यह मंगलवार दोपहर तक साफ़ हो जाएगा। आग दोनों तरफ़ लगी है, भीषण है, पर किसको झुलसाएगी और किसको तपाकर खरा सोना बनाएगी, यह देखने वाली बात है। फिलहाल कोई भी दल दलदल में जाए लेकिन कमल तो खिलेगा ही, चाहे शिवराज के स्वरूप में खिले या कमल नाथ के रूप में। और मध्यप्रदेश की राजनीति और सरकार को स्थायित्व देने वाली भी होगी 28 उपचुनाव के परिणाम के रूप में यह संजीवनी। भले ही दिन, महीने और साल में स्थिति फिर डांवाडोल हो जाए। सरकार को जहाँ स्थायित्व मिलेगा तो मध्यप्रदेश विधानसभा को पूर्णकालिक अध्यक्ष मिलना भी तय है तो बहुत से नेताओं के राजयोग में लगा ग्रहण भी अस्त होगा और मंत्री बनकर वह सेवक के रूप में सत्ता का सुख भोग सकेंगे। नया साल 2020 में हुए कोहराम पर विराम लगाते हुए सरकार की अभिराम छवि साढ़े सात करोड़ जनता को आगामी तीन साल तक मोहित होने का मौक़ा देगी, यह उम्मीद ज़रूर की जानी चाहिए।
विंध्य क्षेत्र की अनूपपुर विधानसभा से परिणाम आने की शुरुआत होगी तो चंबल अंचल के ग्वालियर पूर्व में मतगणना संपन्न होने पर लॉक होगी। बिसाहूलाल सिंह ‘लकी सिंबल’ बनकर भाजपा को संजीवनी देंगे या विश्वनाथ ‘नाथ’ की झोली को ख़ुशियों की सौग़ात से भरेंगे, यह सबसे पहले अनूपपुर से ही पता चलेगा।भाजपा निर्भय हो सरकार में बने रहने को आश्वस्त है और कांग्रेस विधायकों के संपर्क में होने की बात सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया ने स्वीकार की है। तो कांग्रेस सरकार में वापसी के दावे को लेकर मस्त है और भाजपा के उन आरोपों से भी त्रस्त है कि कमलनाथ भाजपा विधायकों से संपर्क कर रहे हैं। हालाँकि भाजपा को भरोसा भी है कि उनके विधायक अंगद के पैर की तरह टस से मस नहीं होंगे। तो विधायकों के टस से मस होने के मामले में बैकफ़ुट पर कांग्रेस ही है। जिसके एक विधायक राहुल लोधी 28 उपचुनाव घोषित होने के बाद पद से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम चुके हैं। जैसा कि भदौरिया का दावा है कि तीन कांग्रेस विधायक संपर्क में हैं और निर्दलीय विधायक मिलाकर सरकार के पास 114 विधायकों का समर्थन है तब फिर मामला एकतरफ़ा ही माना जा सकता है। क्योंकि कांग्रेस तो 20 मार्च के पहले भी दावा कर रही थी कि कई भाजपा विधायक संपर्क में हैं लेकिन हाथ ख़ाली के ख़ाली रहे थे और कुर्सी भी ख़ाली करनी पड़ी थी।
हालाँकि अब कांग्रेस से जुड़े एक संत का दावा है कि उपचुनाव के परिणाम कांग्रेस के पक्ष में रहेंगे और कमलनाथ मुख्यमंत्री बनेंगे। साथ ही भाजपा के सात विधायक इस्तीफा देंगे जिन सीटों पर उपचुनाव मार्च में होंगे। यह दावा कितना खरा है और भाजपा सरकार को कितना खतरा है…सारी तस्वीर मंगलवार 10 नवंबर को ही साफ़ हो जाएगी। वैसे तो संतों को राजनीति से परहेज़ करना चाहिए वरना अंजाम क्या होता है, यह मध्यप्रदेश की जनता ने बख़ूबी देख लिया है। शिवराज और कमलनाथ सरकारों में मंत्री दर्जा प्राप्त किए कम्प्यूटर बाबा ने फिलहाल शिवराज सरकार और सिंधिया के विरोध में लोकतंत्र बचाओ यात्रा निकाली थी। विधानसभा चुनाव 2018 के पहले भी तत्कालीन शिवराज सरकार को सत्ता से बाहर करने की अपील की थी। कभी कलेक्टर-एसपी इन्हीं कम्प्यूटर बाबा के आगे-पीछे घूमते थे, जी हुज़ूरी करते थे। तब शायद बाबा को अंदाज़ा नहीं था कि कलेक्टर-एसपी कितने पावरफुल होते हैं। और सरकार से बैर करने पर भगवान भी नहीं पूछ पाते कि संत तेरा क्या प्रिय करूँ ? फिलहाल तो लोकतंत्र बचा या नहीं, यह बाद में पता चलेगा लेकिन 3 नवंबर मतदान खत्म होने के बाद और 10 नवंबर को मतगणना होने से पहले ही बाबा के कंप्यूटर का पावर सरकार और पुलिस-प्रशासन ने पूरी तरह फ़ेल कर दिया है।शायद इसीलिए कहा जाता है कि संतों को राजनीति से परहेज़ करना चाहिए और धर्म-नीति के मार्ग पर ही चलना चाहिए। क्योंकि राजनेता तो हर स्थिति-परिस्थिति का आकलन कर सामना करने के लिए तैयार रहते हैं लेकिन संत-महंत के लिए यह जीवन-मरण का प्रश्न बन जाता है।
खैर अनूपपुर से शुरु होकर ग्वालियर पूर्व विधानसभा सीट पर मतगणना खत्म होगी, जहाँ मुक़ाबला भाजपा के मुन्नालाल गोयल और कांग्रेस के डॉ. सतीश सिंह सिकरवार के बीच में है। अनूपपुर और ग्वालियर पूर्व विधानसभा के बीच 26 विधानसभा सीटों के परिणाम दल और दिलों को बेचैनी में तडपाएंगे या फिर संजीवनी दे सुकून की साँस लेने का अभयदान देंगे।पर यह उम्मीद ज़रूर है कि मध्यप्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता के लिए यह मंगलवार ज़रूर मंगलकारी साबित होगा और प्रदेश में स्थायित्व के गलियारे से गुज़रकर सरकार विधानसभा तक पहुँच लोककल्याण के कार्यों के क्रियान्वयन पर अमल करेगी।