नौ माह बाद विधानसभा होगी स्पीकर के हवाले … तैयार बैठे हैं मंत्री बनने वाले …
कौशल किशोर चतुर्वेदी
आख़िरकार अब यह तय हो गया है कि मध्यप्रदेश की पन्द्रहवीं विधानसभा का अष्टम् सत्र 28 दिसम्बर, 2020 से 30 दिसम्बर 2020 तक आहूत हो रहा है। विधानसभा सचिवालय द्वारा अधिसूचना जारी होने के बाद स्थिति पूरी तरह से साफ़ हो गई है। इस तीन दिवसीय सत्र में सदन की कुल 03 बैठकें होंगी, जिसमें महत्वपूर्ण शासकीय विधि विषयक एवं वित्तीय कार्य संपन्न होंगे ।तीन दिवसीय सत्र के महत्वपूर्ण शासकीय कार्यों में नवनिर्वाचित 28 विधायकों को शपथ दिलायी जाएगी तो मध्य प्रदेश विधान सभा को नौ महीने बाद निर्वाचित विधानसभा अध्यक्ष भी मिलेगा। प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा विधानसभा अध्यक्ष के बतौर सदन में दिखेंगे या फिर मंत्री के रूप में अपनी नई पारी शुरू करेंगे…यह भी अब वर्ष 2020 में ही तय हो जाएगा।
मध्य प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर भी लगातार क़यास लगाए जा रहे हैं। सबसे ज़्यादा इंतज़ार भाजपा से विधायक चुनकर आए तुलसी राम सिलावट और गोविन्द सिंह राजपूत को है। संवैधानिक बाध्यता के चलते जिन्हें मंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। विधायक चुने जाने के बाद शपथ ग्रहण करते ही इनका मंत्री पद का दावा सरकार और संगठन कोई भी नकार नहीं पाएगा। और शायद इस एक महीने में सरकार और संगठन के पास भी पर्याप्त समय है कि वह क्षेत्रीय, जातीय और राजनैतिक समीकरणों के मुताबिक़ संतुलन बनाते हुए वह नाम भी तय कर सकती हैं जिन्हें मंत्रिमंडल विस्तार में जगह दी जानी है। ऐसे में नए साल में मंत्री बनने की सौग़ात भी भाजपा विधायकों को मिल सकती है।जिस तरह भारतीय जनता पार्टी में जल्द से जल्द संगठन स्तर पर नई टीम गठित किए जाने की बात जोरों पर चल रही है, उसके मुताबिक़ मंत्रिमंडल विस्तार की उम्मीद भी की जा सकती है।क्योंकि मंत्री बनने वाले मुख्य-मुख्य चेहरे पहले से ही तैयार बैठे हैं, बस सरकार और संगठन की हरी झंडी मिलना बाक़ी है।राजेन्द्र शुक्ल, अजय विश्नोई, गौरीशंकर बिसेन सहित वह तमाम नाम है जो अपनी वरिष्ठता और पार्टी के प्रति अपने समर्पण के साथ ही यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि सरकार और संगठन संतुलन बैठाएगा और सम्मान पाने की सूची में उनका भी नाम आएगा।अब जब चौदहवीं विधानसभा के मुक़ाबले इस बार भाजपा विधायकों की संख्या भी कम है और पिछली सरकार के कई मंत्री भी चुनाव हार कर दावेदारी से बाहर है, ऐसे में भाजपा के हाशिये पर रहे वरिष्ठ विधायक भी इंसाफ़ की बाट जोह रहे हैं, जिसे क़तई भी बेजा नहीं माना जा सकता।
यह सत्र इसलिए भी याद किया जा सकता है कि सरकार इसमें धर्म स्वातंत्र्य संशोधन विधेयक लाने की बात भी कह रही है।गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा बार-बार इस बात को दोहरा रहे हैं कि वह लव जो जिहाद की तरफ़ ले जाए … क़तई मंज़ूर नहीं है। विभाग ने इस विधेयक से संबंधित ड्राफ़्ट भी तैयार कर लिया है और बाक़ी खानापूर्ति के बाद इस सत्र में यह विधेयक पारित होकर मूर्त रूप ले सकता है। गृह मंत्री पहले ही यह बात कह चुके हैं कि आगामी सत्र में धर्म स्वातंत्र्य संशोधन विधेयक लाया जाएगा। उत्तर प्रदेश की तर्ज़ पर मध्य प्रदेश में भी धर्मांतरण पर सरकार इस विधेयक के ज़रिए सख़्त रवैया अपनाएगी।
निश्चित तौर से यह सत्र अति महत्वपूर्ण है। कांग्रेस की 15 महीने की सरकार के बाद बनी भाजपा सरकार के नौ माह गुज़रने के बाद यह पहला सत्र है, जब सदन में भाजपा सत्ता में और कांग्रेस विपक्ष में बैठी दिखाई देगी। ऐसे कई चेहरे मंत्री बनकर भाजपा सरकार के खेमे में दिखेंगे जो 15 महीने तक कांग्रेस सरकार में भी सत्ता में रहे थे। विचारधारा बदली हुई होगी… पर चेहरे वही होंगे, जो कभी मुख्यमंत्री कमलनाथ के बचाव में विपक्ष में बैठे भाजपा के विधायकों पर निशाना साधते थे, वही अब मुख्यमंत्री शिवराज के बचाव में विपक्ष में बैठे कांग्रेस विधायकों पर निशाना साधेंगे। तेवरों में कितना फ़र्क पड़ता है यह ग़ौर करने लायक होगा।